NHRC’s Strict Action in Custodial Death Case, Notice to Odisha Government; हिरासत में मौत के मामले में NHRC की सख्ती, ओडिशा सरकार को नोटिस:

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने हाल ही में “हिरासत में मौत” के एक मामले में ओडिशा सरकार को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस इसलिए जारी किया गया है क्योंकि हिरासत में जिस व्यक्ति की मौत हुई थी, उसके परिजनों को तय मुआवजा नहीं दिया गया था। NHRC ने ओडिशा सरकार से स्पष्टीकरण मांगते हुए इस मामले में उचित कार्रवाई की मांग की है।

हिरासत में मौत (Custodial Death):

हिरासत में मौतें वास्तव में पुलिस और न्यायिक हिरासत में हुई हिंसक घटनाओं का ही एक रूप हैं। इस तरह की हिंसक घटनाओं में हिरासत में बलात्कार और यातना की घटनाएं भी शामिल हैं। हिरासत में मौत के मामले अक्सर पुलिस या जेल प्रशासन की प्रताड़ना, दुर्व्यवहार और अमानवीय व्यवहार का परिणाम होते हैं। यह एक गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन है और न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास को कमजोर करता है।

भारत में हिरासत में होने वाली मौत की स्थिति:

2017 से 2022 के बीच देश में 660 से अधिक लोगों की हिरासत में मौत हुई थी। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, इस दौरान गुजरात में सबसे अधिक 80 लोगों की हिरासत में मौतें हुईं, इसके बाद महाराष्ट्र का स्थान है। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि हिरासत में होने वाली मौतें एक गंभीर समस्या हैं, जिसे तुरंत संबोधित करने की आवश्यकता है। हिरासत में मौतें न केवल व्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन हैं, बल्कि यह हमारे न्यायिक और पुलिस तंत्र की विफलता को भी दर्शाती हैं।

हिरासत में होने वाली मौतों को रोकने के लिए संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपाय:

संवैधानिक उपाय

  1. अनुच्छेद 14: इसमें सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार दिया गया है। इसका उद्देश्य है कि हर व्यक्ति को समान कानूनी संरक्षण मिले।
  2. अनुच्छेद 21: इसमें कहा गया है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।

कानूनी उपाय:

  1. भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 330 और 331: ये धाराएं हिरासत में कैद किसी व्यक्ति से अपराध को जबरन स्वीकार करवाने के लिए चोट पहुँचाने पर सजा का प्रावधान करती हैं।
  2. CrPC की धारा 176: यह धारा हिरासत में मौत के मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा जांच का प्रावधान करती है। यह सुनिश्चित करता है कि हिरासत में मौत के मामलों की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच हो।
  3. नए आपराधिक कानून: भारतीय दंड संहिता, CrPC और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह 1 जुलाई 2023 से नए आपराधिक कानून लागू हो रहे हैं। इन कानूनों या संहिताओं में भी हिरासत में होने वाली मौत के मामले में इस तरह के प्रावधान किए गए हैं। IPC की जगह लेने वाली भारतीय न्याय संहिता की धारा 120 और धारा 127 में अभियुक्तों की सुरक्षा हेतु प्रावधान किए गए हैं।

अन्य सुरक्षा उपाय

  1. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC): NHRC ने हिरासत में होने वाली मौत पर दिशा-निर्देश (1993) जारी किए हैं। इनमें हिरासत में किसी व्यक्ति की मौत या बलात्कार की घटना को 24 घंटे के भीतर रिपोर्ट करने का निर्देश दिया गया है। यह सुनिश्चित करता है कि ऐसी घटनाओं की समय पर सूचना दी जाए और उनकी जांच हो।
  2. सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश: सुप्रीम कोर्ट ने डी.के. बसु वाद में जेल में बंद कैदियों की सुरक्षा और गिरफ्तारी की प्रक्रिया के लिए विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं। यह दिशा-निर्देश गिरफ्तारी और हिरासत में पारदर्शिता और मानवाधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित करते हैं।

हिरासत में होने वाली मौत को रोकने में चुनौतियां:

  1. संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन 1997: भारत ने “यातना के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन 1997” की अभिपुष्टि नहीं की है। यह अंतरराष्ट्रीय संधि यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सजा को रोकने के लिए है।
  2. राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का अभाव: देश में यातना-रोधी राष्ट्रीय फ्रेमवर्क नहीं बनाया गया है। यह आवश्यक है कि यातना के खिलाफ एक मजबूत और प्रभावी कानूनी ढांचा हो।
  3. न्यायालयों में देरी: भारत में न्यायालयों में मामलों के निपटारे में काफी वक्त लग जाता है। यह देरी न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित करती है और पीड़ितों को न्याय मिलने में बाधा उत्पन्न करती है।
  4. पुलिस पर दबाव: जब भी आपराधिक घटनाएं बढ़ जाती हैं, तब मामलों की त्वरित जांच करने के लिए पुलिस पर दबाव बढ़ जाता है। संगीन अपराधों के मामलों में तो दबाव और भी अधिक होता है, जिससे हिरासत में यातना और दुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ सकती हैं।

निष्कर्ष:

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का यह कदम महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हिरासत में होने वाली मौतों की गंभीरता को उजागर करता है और इसके प्रति संवेदनशीलता बढ़ाता है। इस तरह की घटनाएं न केवल व्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिकारों का उल्लंघन हैं, बल्कि यह हमारे न्यायिक और पुलिस तंत्र की विफलता को भी दर्शाती हैं। इस दिशा में संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों का सख्ती से पालन और प्रभावी कार्यान्वयन आवश्यक है। इसके साथ ही, यातना-रोधी कानूनों को सख्त बनाना और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए मजबूत तंत्र विकसित करना भी जरूरी है। हिरासत में मौतों को रोकने के लिए न्यायिक और पुलिस सुधार आवश्यक हैं और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कठोर कदम उठाने की जरूरत है।

FAQs:

हिरासत में मौत क्या है?

हिरासत में मौत वह घटना है जिसमें किसी व्यक्ति की पुलिस या न्यायिक हिरासत के दौरान मौत हो जाती है। इसमें पुलिस प्रताड़ना, दुर्व्यवहार, यातना और अमानवीय व्यवहार शामिल हो सकते हैं।

भारत में हिरासत में मौत की स्थिति कैसी है?

2017 से 2022 के बीच भारत में 660 से अधिक लोगों की हिरासत में मौत हुई थी। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, गुजरात में सबसे अधिक 80 लोगों की हिरासत में मौतें हुईं, इसके बाद महाराष्ट्र का स्थान है।

हिरासत में मौत को रोकने के लिए संवैधानिक और कानूनी उपाय क्या हैं?

संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 सभी व्यक्तियों को समानता और जीवन की सुरक्षा का अधिकार प्रदान करते हैं। कानूनी उपायों में IPC की धारा 330 और 331, CrPC की धारा 176 और नए आपराधिक कानून शामिल हैं जो हिरासत में मौत के मामलों में सजा और जांच का प्रावधान करते हैं।

हिरासत में मौत को रोकने में क्या चुनौतियां हैं?

भारत ने “यातना के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन 1997” की अभिपुष्टि नहीं की है, देश में यातना-रोधी राष्ट्रीय फ्रेमवर्क का अभाव है, न्यायालयों में मामलों के निपटारे में देरी होती है, और पुलिस पर मामलों की त्वरित जांच का दबाव होता है।

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