भारत के शिक्षा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए, शिक्षा मंत्रालय ने कक्षा 5 और 8 के लिए ‘नो डिटेंशन’ नीति को समाप्त करने का निर्णय लिया है। यह नीति 2009 के निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (RTE) अधिनियम के
तहत 2010 में लागू की गई थी, जिसका उद्देश्य बच्चों के स्कूली जीवन में आत्मविश्वास बनाए रखना और ड्रॉपआउट दर को कम करना था। हालांकि, वर्षों बाद इस नीति के कारण छात्रों के सीखने के परिणामों में गिरावट देखी गई, जिसके चलते इसे समाप्त करने का निर्णय लिया गया।
‘नो डिटेंशन’ नीति क्या थी और इसका उद्देश्य क्या था?
2010 में लागू की गई इस नीति के तहत, छात्रों को कक्षा 5 और 8 में फेल नहीं किया जाता था। इस नीति का प्रमुख उद्देश्य था कि बच्चे बिना किसी मानसिक दबाव के सीख सकें और परीक्षा के डर से स्कूल न छोड़ें। इसके पीछे यह विचार था कि जब बच्चों पर फेल होने का दबाव नहीं होगा, तो वे अपनी पढ़ाई में अधिक रुचि लेंगे और स्कूल में बने रहेंगे
नीति समाप्ति का कारण – सीखने के स्तर में गिरावट
हाल के वर्षों में कई अध्ययनों और राष्ट्रीय मूल्यांकन रिपोर्ट्स में यह पाया गया कि ‘नो डिटेंशन’ नीति के कारण छात्रों में पढ़ाई के प्रति रुचि घट रही थी। स्वचालित प्रमोशन के कारण छात्रों में प्रतिस्पर्धा की भावना कमजोर पड़ने लगी और शिक्षकों की जवाबदेही में भी कमी आई। परिणामस्वरूप, छात्रों के सीखने के परिणाम (Learning Outcomes) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
2024 का नया संशोधन
शिक्षा मंत्रालय ने निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (RTE) (संशोधन) नियम 2024 के तहत ‘नो डिटेंशन’ नीति को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया। इसके तहत, यदि छात्र वार्षिक परीक्षा में फेल होता है, तो उसे दो महीने के भीतर अतिरिक्त कक्षाओं का लाभ मिलेगा और फिर उसे पुनः परीक्षा देने का अवसर प्राप्त होगा। किसी भी बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक स्कूल से नहीं निकाला जा सकता।
किन राज्यों ने पहले ही इस नीति को समाप्त कर दिया था?
हालांकि शिक्षा राज्य सूची का विषय है, इसलिए 16 राज्यों और दिल्ली सहित एक केंद्र शासित प्रदेश ने पहले ही इस नीति को समाप्त कर दिया था। केंद्र सरकार का यह निर्णय अब पूरे देश में लागू होगा, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद की जा रही है।
‘नो डिटेंशन’ नीति समाप्त करने के पक्ष में तर्क:
- सीखने के परिणामों में गिरावट:
राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) और ASER रिपोर्ट्स के अनुसार, कई छात्रों के सीखने के स्तर में गिरावट देखी गई थी। 2023 में कक्षा 10 और 12 में 65 लाख छात्र असफल हुए थे। - प्रोत्साहन की कमी:
स्वचालित प्रमोशन के कारण छात्रों में सीखने की ललक कम हो गई थी। कई छात्र पढ़ाई के प्रति गंभीर नहीं थे, जिससे शिक्षा का स्तर प्रभावित हुआ। - शिक्षकों की जवाबदेही:
जब छात्रों को फेल नहीं किया जाता था, तो शिक्षकों की जिम्मेदारी भी कम हो जाती थी। नई नीति शिक्षकों को अधिक उत्तरदायी बनाएगी।
‘नो डिटेंशन’ नीति बनाए रखने के विपक्ष में तर्क:
- ड्रॉपआउट दर में वृद्धि:
फेल होने के डर से कई छात्र स्कूल छोड़ सकते हैं, जिससे ड्रॉपआउट दर बढ़ सकती है। - आत्मसम्मान पर प्रभाव:
कक्षा में फेल होने के कारण बच्चों में आत्मसम्मान की भावना कमजोर हो सकती है, जिससे वे हीनभावना का शिकार हो सकते हैं। - समग्र विकास पर प्रभाव:
बच्चों के मूल्यांकन में केवल परीक्षा को ही आधार न बनाकर उनके समग्र विकास को ध्यान में रखना आवश्यक है।
शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009:
पहले, भारत में शिक्षा राज्य सरकारों का विषय थी। 1935 के भारत सरकार अधिनियम के अनुसार, शिक्षा पर राज्य सरकारें कानून बनाती थीं। लेकिन 1976 में, 42वें संविधान संशोधन के बाद, शिक्षा को “समवर्ती सूची” में डाल दिया गया। इसका मतलब है कि अब केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों शिक्षा से जुड़े कानून बना सकते हैं।
शिक्षा को मौलिक अधिकार कैसे बनाया गया?
2002 में, 86वें संविधान संशोधन के ज़रिए, 6 से 14 साल के बच्चों के लिए शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया। इस बदलाव के तहत, संविधान में अनुच्छेद 21A जोड़ा गया, जिससे सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा पाने का अधिकार मिला।
राज्य की ज़िम्मेदारी क्या है?
- अनुच्छेद 45 में बदलाव कर राज्य सरकारों को यह ज़िम्मेदारी दी गई कि वे 6 साल की उम्र तक के बच्चों के लिए शुरुआती देखभाल और शिक्षा का प्रबंध करें।
- अनुच्छेद 51A में संशोधन करके माता-पिता और अभिभावकों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया कि वे 6 से 14 साल के बच्चों को स्कूल भेजें और उनकी शिक्षा सुनिश्चित करें।
RTE अधिनियम, 2009
2009 में, संसद ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act) पारित किया। यह अधिनियम अनुच्छेद 21A के तहत लाया गया और शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में लागू किया गया। इसका मतलब है कि अब सरकार की यह ज़िम्मेदारी है कि वह 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराए।
निष्कर्ष:
शिक्षा मंत्रालय का यह कदम छात्रों के शैक्षणिक स्तर को सुधारने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है। यदि इसे सही ढंग से लागू किया जाता है, तो यह नीति न केवल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करेगी, बल्कि भारत के भविष्य के नागरिकों को अधिक सशक्त बनाएगी।
FAQs:
‘नो डिटेंशन’ नीति क्या है?
‘नो डिटेंशन’ नीति के तहत कक्षा 5 और 8 के छात्रों को अंतिम परीक्षा में फेल नहीं किया जाता था, भले ही उनके प्रदर्शन के आधार पर वे उत्तीर्ण न हों।
शिक्षा मंत्रालय ने ‘नो डिटेंशन’ नीति को क्यों समाप्त किया है?
नीति समाप्त करने का मुख्य कारण छात्रों के सीखने के स्तर में गिरावट और स्वचालित प्रमोशन के कारण शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव हैं।