भारत और कनाडा के बीच राजनयिक संबंधों में गंभीर तनाव तब उत्पन्न हुआ जब कनाडा ने भारतीय अधिकारियों पर आपराधिक मामले में शामिल होने का आरोप लगाया। कनाडा ने भारत सरकार से इन अधिकारियों की राजनयिक प्रतिरक्षा को हटाने की मांग की, ताकि उनके खिलाफ जांच की जा सके। हालांकि, भारत ने इन आरोपों को निराधार बताया और तुरंत अपने उच्चायुक्त को कनाडा से वापस बुला लिया। साथ ही, भारत ने कनाडा के कई राजनयिकों को निष्कासित कर दिया। यह कदम दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों में एक बड़ा मोड़ साबित हुआ है।
राजनयिक प्रतिरक्षा: अंतर्राष्ट्रीय कानून का महत्वपूर्ण सिद्धांत
राजनयिक प्रतिरक्षा अंतर्राष्ट्रीय कानून का एक बुनियादी सिद्धांत है, जिसके तहत विदेशी राजनयिक अधिकारियों को उनकी आधिकारिक और व्यक्तिगत गतिविधियों के लिए स्थानीय अदालतों और प्राधिकरणों से संरक्षण प्राप्त होता है। यह प्रतिरक्षा राजनयिक संबंधों पर वियना कन्वेंशन, 1961 के तहत मान्यता प्राप्त है। इस कन्वेंशन में शामिल देशों के राजनयिक अधिकारियों को विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां प्रदान की जाती हैं ताकि वे बिना किसी डर या बाधा के अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकें।
भारत ने 1965 में इस कन्वेंशन में हस्ताक्षर किए थे और 1972 में राजनयिक संबंध (वियना कन्वेंशन) अधिनियम, 1972 के माध्यम से इसे लागू किया था। इस अधिनियम के तहत भारत में तैनात विदेशी राजनयिकों को विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, और इसी तरह से भारतीय राजनयिक भी विदेशों में प्रतिरक्षा का लाभ उठा सकते हैं।
भारत-कनाडा संबंधों में हालिया विवाद:
भारत और कनाडा के बीच राजनयिक तनाव का यह मुद्दा अचानक उत्पन्न नहीं हुआ। इसके पीछे कई ऐतिहासिक और राजनीतिक मुद्दे हैं जो समय-समय पर दोनों देशों के संबंधों को प्रभावित करते रहे हैं। इनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं:
- खालिस्तानी उग्रवादियों का मुद्दा: भारत और कनाडा के संबंधों में खालिस्तानी उग्रवादियों का मुद्दा सबसे बड़ा रोड़ा साबित हुआ है। कनाडा में मौजूद सिख अलगाववादी समूह भारत की संप्रभुता के लिए एक बड़ा खतरा बने हुए हैं। कनाडा सरकार द्वारा इन समूहों का समर्थन और उनके गतिविधियों को नजरअंदाज करना भारत के साथ संबंधों में तनाव का कारण बना है।
- भारतीय संप्रभुता का उल्लंघन: 2023 में कनाडा ने एक जनमत संग्रह का समर्थन किया, जिसमें एक स्वतंत्र सिख राज्य खालिस्तान की स्थापना का प्रस्ताव था। इसे भारत ने अपनी संप्रभुता और अखंडता पर हमला माना और इसके खिलाफ कड़ा विरोध जताया।
- सुरक्षा सहयोग में कमी: कनाडा में उग्रवादियों और संगठित अपराध से जुड़े अपराधियों को लेकर भारत के प्रत्यर्पण अनुरोधों को कनाडा सरकार ने कई बार अनदेखा किया है। इससे दोनों देशों के बीच सुरक्षा सहयोग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- वोट बैंक की राजनीति: कनाडा में सिख समुदाय, विशेष रूप से ओंटारियो और ब्रिटिश कोलंबिया जैसे प्रांतों में, एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है। कनाडा की लिबरल पार्टी द्वारा इस समुदाय को समर्थन देने से भारत और कनाडा के बीच राजनयिक संबंधों में और अधिक खटास आई है।
- व्यापारिक संबंधों में गिरावट: 2023 में भारत और कनाडा के बीच द्विपक्षीय व्यापार में गिरावट दर्ज की गई। 2022 में यह व्यापार 10.50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जो 2023 में घटकर 7.65 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक रह गया।
भारत-कनाडा संबंधों की पृष्ठभूमि:
भारत और कनाडा के बीच राजनयिक और वाणिज्यिक संबंधों का एक लंबा इतिहास रहा है। दोनों देशों ने कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं:
परमाणु सहयोग समझौता (2010): इस समझौते के तहत असैन्य परमाणु सहयोग पर दोनों देशों के बीच संयुक्त समिति का गठन किया गया था। इस समझौते ने परमाणु ऊर्जा और सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा दिया।
प्रत्यर्पण संधि (1987): भारत और कनाडा के बीच प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके तहत दोनों देशों के बीच आपराधिक मामलों में सहयोग का प्रावधान है।
अंतरिक्ष सहयोग: भारत ने 2018 में अपने PSLV से कनाडा का पहला LEO (लो अर्थ ऑर्बिट) उपग्रह प्रक्षेपित किया था, जिससे दोनों देशों के बीच वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग बढ़ा था।
हालिया राजनयिक कदम: भारत ने कनाडाई राजनयिकों को निष्कासित किया
भारत और कनाडा के बीच हालिया राजनयिक विवाद के चलते, भारत ने कनाडाई राजनयिकों को निष्कासित करने का कड़ा कदम उठाया। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि भारत अब इस मुद्दे पर कोई नरमी बरतने के मूड में नहीं है। कनाडा सरकार द्वारा सिख अलगाववादियों का समर्थन और भारतीय राजनयिकों पर लगाए गए आरोपों ने भारत की संप्रभुता और सुरक्षा को चुनौती दी है, जिसके जवाब में यह कदम उठाया गया है।
निष्कर्ष:
भारत और कनाडा के बीच यह राजनयिक विवाद कई गंभीर मुद्दों को सामने लाता है, जिसमें खालिस्तानी उग्रवाद, सुरक्षा सहयोग, व्यापारिक संबंधों में गिरावट और वोट बैंक की राजनीति प्रमुख हैं। दोनों देशों के बीच इन मुद्दों का समाधान जल्द होना आवश्यक है, क्योंकि भारत और कनाडा के बीच दशकों पुराने कूटनीतिक और वाणिज्यिक संबंध रहे हैं।
हालांकि, इस राजनयिक विवाद का प्रभाव दोनों देशों के रिश्तों पर गंभीर रूप से पड़ सकता है। अब यह देखना होगा कि भारत और कनाडा इन मुद्दों का समाधान कैसे निकालते हैं और अपने कूटनीतिक संबंधों को पटरी पर वापस लाते हैं।
FAQs:
राजनयिक प्रतिरक्षा क्या है?
राजनयिक प्रतिरक्षा एक अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत है, जिसके अनुसार विदेशी राजनयिक अधिकारियों को स्थानीय कानूनों से छूट दी जाती है। इसका मतलब है कि उन्हें उनके कार्यों के लिए स्थानीय अदालतों या प्राधिकारियों द्वारा जवाबदेह नहीं ठहराया जा सकता।
खालिस्तानी उग्रवाद का भारत-कनाडा संबंधों पर क्या प्रभाव है?
खालिस्तानी उग्रवाद कनाडा में भारत-कनाडा संबंधों में एक बड़ा मुद्दा है। कनाडा सरकार द्वारा समर्थित सिख अलगाववादी समूहों की गतिविधियों ने दोनों देशों के कूटनीतिक संबंधों में तनाव पैदा कर दिया है।
भारत-कनाडा व्यापारिक संबंधों की वर्तमान स्थिति क्या है?
2023 में भारत और कनाडा के बीच द्विपक्षीय व्यापार में गिरावट दर्ज की गई थी। 2022 में यह व्यापार 10.50 बिलियन अमरीकी डॉलर का था, जो 2023 में घटकर 7.65 बिलियन अमरीकी डॉलर पर आ गया।