अहिंसक आंदोलन: 1973 में उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) में सुंदरलाल बहुगुणा, गौरा देवी के नेतृत्व में वनों की कटाई रोकने के लिए शुरू हुआ।
अद्वितीय रणनीति:
वृक्षों को बचाने के लिए 'चिपको' रणनीति - पेड़ों को गले लगाकर खड़े होना।
जन-भागीदारी:
स्थानीय ग्रामीणों, विशेष रूप से महिलाओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
18वीं शताब्दी के बिश्नोई समुदाय के बलिदान से प्रेरित, जिन्होंने पवित्र वृक्षों की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति दी थी।
इको-फेमिनिज्म:
महिलाओं की भागीदारी ने पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तिकरण के बीच संबंधों को उजागर किया।
पर्यावरण संरक्षण पर जोर:
पेड़ों से कहीं अधिक, प्रकृति के सभी तत्वों - जंगल, पहाड़, नदियों - को बचाने का संदेश।
सामुदायिक सहभागिता:
सामाजिक परिवर्तन लाने में आम जनता की शक्ति का प्रमाण।
स्थायी विकास की नींव:
यह दर्शाता है कि पर्यावरण की रक्षा करते हुए प्रगति संभव है।
इको-फेमिनिज्म का प्रभाव:
नर्मदा बचाओ आंदोलन, अप्पिको आंदोलन, साइलेंट वैली आंदोलन जैसे आंदोलनों को प्रेरित किया।
प्रेरणादायी विरासत:
साहस, नेतृत्व और प्रकृति के प्रति समर्पण का प्रतीक। भारत को पर्यावरण के प्रति जागरूक राष्ट्र बनाने में योगदान दिया।
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